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सोमवार, 29 जून 2015

एफसीआई और गेंहूँ का भंडार

                                                      इस वर्ष असमय वर्षा और लगातार मौसम ख़राब रहने के चलते जिस तरह से सरकारी क्षेत्र की गेंहूँ खरीद में स्थापित नियमों में ढिलाई दी गयी थी और एफसीआई द्वारा लगभग २७ मलियन टन गेंहूँ का स्टॉक जमा कर लिया गया था आज वह उसके लिए बड़ी समस्या बनता हुआ दिखाई दे रहा है. एफसीआई के अनुसार यह गेंहूँ गुणवत्ता में कुछ कमज़ोर साबित हो रहा है क्योकि सरकार की तरफ से उसे नियमों के अनुपालन में ढील देने की बात कही गयी थी जिससे किसानों के नुकसान को कम करने में मदद की जा सके. केंद्रीय स्तर पर लिए गए इस फैसले से निश्चित तौर पर किसानों को लाभ मिला और उन्हें अपनी कुछ कम गुणवत्ता की फसल के भी सही दाम मिल गए थे पर अब यही खरीद एफसीआई के लिए बड़ी समस्या बन गयी है और एक अनुमान के अनुसार उसके लिए लगभग ७ मिलियन टन गेंहूँ को खुले बाज़ार में बेचने को मजबूर होना पड़ सकता है जहाँ पहले से ही वर्तमान आयात नीतियों के चलते सस्ते आयातित गेंहूँ की भरमार है.
                        एक अनुमान के अनुसार देश के पीडीएस सिस्टम में लगभग २० मिलियन टन गेंहूँ की खपत की सम्भावना है पर इस कम गुणवत्ता के गेंहूँ के चलते अब एफसीआई इससे सम्बंधित किसी भी स्थिति में इससे अधिक स्टॉक को बाजार में बेचने को बाध्य होगी क्योंकि इसका लम्बे समय तक भण्डारण भी नहीं किया जा सकता है. आज इस ७ मिलियन टन गेंहूँ और इसमें लगे जनता के पैसे के सदुपयोग के लिए गेंहूँ आयत की नीतियों में इस वर्ष कुछ परिवर्तन करने की आवश्यकता है जिससे आयातित गेंहूँ के सामने घरेलू गेंहूँ को भी समय रहते बाजार में बेचा जा सके. यदि सरकार की तरफ से इस वर्ष गेंहूँ आयात के नियमों में आयात शुल्क इतना बढ़ा दिया जाये कि वह घरेलू से कम मूल्य पर नहीं बेचा जा सके तो एफसीआई की समस्या का सही तरह से समाधान भी हो सकता है. आवश्यकता पड़ने पर आयात किये जाने की नीति का सरकार को पूरा ख्याल रखना चाहिए पर एफसीआई और जनता से जुड़े मद्दों पर भी समय रहते ध्यान देने की आवश्यकता भी है.
                        यदि इस मामले में समय रहते सरकार की तरफ से कोई ठोस नीतिगत निर्णय नहीं लिया गया तो निश्चित तौर पर एफसीआई के लिए गंभीर स्थिति बन सकती है. इसके हितों को ध्यान में रखते हुए अब सरकार को पहल कर देनी चाहिए क्योंकि निजी आयातकों के लिए सही समय से यदि स्पष्ट नीतियां सामने नहीं आयीं तो विदेशों से आयातित गेंहूँ को आने में समय नहीं लगेगा और निजी क्षेत्र द्वारा इस कम गुणवत्ता के गेंहूँ की खरीद से पूरी तरह से किनारा कर लिया जायेगा. यदि देश के किसानों के सामने कोई संकट आता है तो केवल सरकार ही क्यों हम आम लोग भी उससे निपटने के लिए कुछ करने के लिए तत्पर दिखाई देने चाहिए तथा देश के खाद्य व्यापार से जुड़े हुए लोगों को भी विचार करते हुए इस गेंहूँ की खरीद पर भी ध्यान देना चाहिए जिससे सरकार का घाटा भी नियंत्रण में रहे और आने वाले समय में देश के किसानों की समस्याओं और उनके हितों से आमलोग जुड़ाव भी महसूस कर सकें. इस छोटे से सहयोग से आम लोग उस किसान के लिए परिस्थितियों में सुधार करने में अपना छोटा पर अत्यंत महत्वपूर्ण सहयोग कर सकते हैं जो हर विपरीत परिस्थिति में भी देश का पेट भरने का काम करने में लगा रहता है.     
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