मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 28 मई 2015

बाज़ारीकरण - उपभोक्ता के विकल्प

                                        किसी अच्छे काम को शुरू करने के लिए यदि संकल्प कर लिया जाये तो उसको पूरा होने में समय भी नहीं लगता है इसका सबसे अच्छा उदाहरण जालन्धर जिले के सींचेवाल गांव में देखा जा सकता है. पंजाब में बड़े पैमाने पर सामान्य सफाई और जल स्वच्छता पर काम करने वाले बाबा बलबीर सिंह सींचेवाल की प्रेरणा पर इस गाँव ने एक और ऐसा काम करके दिखा दिया है जिसके बारे में आम लोग सोच भी नहीं सकते हैं आम उपभोक्ता वस्तुओं के बढ़ते दामों के बीच इस गांव के लोगों के मन में यह विचार आया कि क्यों न गांव का अपना ही एक शॉपिंग मॉल बनाया जाये जहाँ पर गांव के लोगों को रोज़मर्रा की वस्तुएं काम मूल्य पर मिलना शुरू हो सकें. इस विचार को मूर्त रूप देने के लिए १० लोगों ने मिलकर ओमकार समाज भलाई सोसाइटी नाम से एक संगठन बनाया और उसके प्रयासों से गांव में डेरे की ज़मीन पर ही एक मॉल बनाने की शुरुवात कर दी गयी जो आज पूरी तरह से शुरू होकर स्थानीय लोगों को बाज़ार से भी कम मूल्य पर दैनिक उपभोग की वस्तुएं उपलब्ध करवाने का काम करना शुरू कर चुका है.
                        यदि गौर से देखा जाये तो यह मामला सामाजिक भागीदारी और सहकारिता के उस मंतव्य के साथ पूरी तरह से मेल भी खाता है जिसका आज़ाद भारत में सपना देखा गया था. आज़ादी के बाद शुरुवाती वर्षों में और लगभग अस्सी के दशक तक सहकारिता के दम पर जिस तरह से समाज की भलाई के काम निरंतर किये जाते रहे उसके बाद देश में बढ़ते हुए भ्रष्टाचार तथा नयी पीढ़ी के लोगों के राजनीति में आने के बाद राजनीति को जिस तरह से धन कमाने का एक धंधा समझा जाने लगा तब सहकारिता की रीढ़ पूरी तरह से टूटनी शुरू हो गयी. आज भी गौर से देखा जाये तो यह अपने आप में सबसे अच्छी व्यवस्था है जो लाभ को अपने सभी सदस्यों में ईमानदारी से बाँट कर आगे बढ़ने की प्रेरणा दिया करती है पर जिस पैमाने पर इस तरह के संगठनों में भ्रष्टाचार बढ़ा हुआ है उसके कारण ही आज सहकारिता का अर्थ पूरी तरह से बदल गया है आज यूपी में सहकारिता का बुरा हाल है तो महाराष्ट्र और गुजरात में यह आज भी अच्छे से काम करने में लगा हुआ है यदि समाज के सहयोग से सरकार इस भ्रष्टाचार पर चोट कर सके तो आम लोगों की राह आसान हो सकती है.
                       बढ़ती मंहगाई के इस दौर में यदि कोई समिति या संगठन अपने दम पर आगे बढ़कर ग्रामीणों को सस्ते मूल्य पर उपलब्ध करने के बारे में सोच रहा है तो उससे हर स्तर पर देश के निचले स्तर को ही मज़बूत करने में सफलता मिलने वाली है क्योंकि जब इस तरह की परियोजना पर स्थानीय स्तर पर प्रबन्ध किया जाता है तो गांव में रोज़गार के अवसर भी बढ़ते हैं तथा जब परियोजना शुरू होती है तो भी काफी लोगों के लिए रोज़गार के अवसर लेकर भी आती है. इस मॉल के सचिव के अनुसार अब लोगों को सामान्य उपयोग की वस्तुएं काफी सस्ते दामों पर मिलनी शुरू हो चुकी हैं क्योंकि हमारा उद्देश्य लाभ कामना नहीं है. उनके द्वारा केवल ५ से १०% का लाभ लेकर बेचा जाने वाला सामान आम लोगों को बहुत सस्ता पड़ रहा है जिस कारण से भी मॉल को चलाने में शुरुवात से किसी दिक्कत की संभावनाएं भी कम होती दिखाई दे रही हैं. कम लाभ पर बिकने वाले इस सामान से जहाँ मॉल की बिक्री भी बढ़ने ही वाली है वहीं निजी सोसाइटी के हाथों में होने के कारण वहां किसी भी तरह का कोई ख़राब सामान भी नहीं बेचा जा रहा है. अब यह अपने आप में एक ऐसा उदाहरण है जिसमें कोई भी व्यक्ति किसी भी तरह से अपने यहाँ इसी तरह का प्रयास कर आमलोगों को नयी राह दिखा सकता है पर यह सब तभी संभव है जब इस पूरे काम में व्यक्तिगत स्वार्थों और महत्वाकांक्षाओं को बिलकुल अलग ही रखा जाये क्योंकि बाबा बलबीर सिंह जैसा निस्वार्थ भाव से आगे चलने वाला व्यक्तित्व हर जगह नहीं होता है.      
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