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सोमवार, 30 मार्च 2015

मोदी का अर्थशास्त्र और संघ

                                                     पिछले वर्ष सत्ता केंद्र में सँभालने वाले मोदी के सामने आर्थिक मोर्चे पर बहुत बड़े परिवर्तन करने के निर्णय को लेकर संघ शुरू से ही आशंकित रहा है क्योंकि उसे भी देश के अन्य राजनैतिक दलों की तरह इस बात का खतरा दिखाई दे रहा है कि पीएम मोदी की इतनी तेज़ी से देश की आर्थिक प्रगति को लम्बे समय तक बनाये रखने में सफलता नहीं मिलने वाली है. आज मोदी जिस मॉडल की बात ज़ोर शोर से कहते हुए सुने जाते हैं वास्तव में वही मॉडल एक समय चीन की अर्थ व्यवस्था को लम्बी छलांग लगाने के लिए सहयोग कर चुका है पर आज एक बार फिर से चीन के सामने भी अपनी अर्थव्यवस्था की वर्तमान गति को बनाये रखने की बहुत बड़ी चुनौती आ गयी है. प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण कानून से लगाकर मेक इन इंडिया तक के कार्यक्रमों को लेकर जिस तरह से ज़मीनी स्तर पर संघ अपनी नाराज़गी दिखाने में लगा है संभवतः मोदी के राजनैतिक सलाहकार उन तक ऐसी ख़बरें पहुँचने ही नहीं दे रहे हैं क्योंकि कांग्रेस आदि विपक्षी दलों के विरोध को भाजपा राजनैतिक कह सकती है पर संघ के विभिन्न संगठनों की आवाज़ के लिए ऐसे बयान देना खुद मोदी के लिए भी मुश्किल काम होने वाला है.
                                     भूमि अधिग्रहण कानून के साथ ही मोदी के मेक इन इंडिया को जिस तरह से स्वादेशी जागरण मंच ने यूपी में प्रादेशिक सम्मलेन में अपनी असहमति दिखाई वह आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर विपक्षियों को लम्बी लड़ाई लड़ने का हौसला देने वाली ही साबित होने वाली है क्योंकि संघ ने मोदी की सरकार बनाने के लिए ज़मीनी स्तर पर बहुत काम किया था फिर भी यदि किसानों और छोटे मझोले उद्योगों के साथ इस तरह का बर्ताव किया जाने लगेगा तो आने वाले समय में देश के विकास की गति को कैसे संभाला जा सकता है ? मंच ने स्पष्ट रूप से सरकार के भूमि अधिग्रहण कानून के नौ संशोधनों पर विचार करने के बाद ही अपनी राय देने का फैसला किया है जिससे यही पता चलता है कि संघ इस कानून के प्रस्तावित स्वरुप को भी देश के किसानों के लिए सही नहीं मानता है. मोदी अपने निर्णयों में तानाशाही प्रवृत्ति के साथ काम करने में विश्वास रखते हैं पर जब देश के हर हिस्से में इस तरह का माहौल बनता हुआ दिखाई दे रहा है तो स्वयं उनको थोड़ा लचीला रुख अपनाते हुए इसे विशेषज्ञों की समिति के सामने भेजकर सभी पक्षों पर खुले मन से विचार करने के बारे में सोचना ही होगा.
                              मंच ने मेक इन इंडिया के बारे में भी जिस तरह की राय दी है मोदी के लिए आने वाले समय में वह भी बड़ा सरदर्द साबित होने वाला है क्योंकि मंच का उद्देश्य भारतीय उद्योगों को बढ़ावा देने का रहा है पर मोदी सरकार इससे उलटे जाकर विदेशी कम्पनियों के माध्यम से भारत में निर्माण को गति देना चाहती है मंच का यह मानना है कि इसे मेक इन इंडिया के स्थान पर मेड बाय इंडिया में बदलना ही होगा क्योंकि विदेशी कम्पनियों द्वारा अपने लाभांश को विदेशों में ले जाया जायेगा जिससे निर्माण क्षेत्र में भले ही प्रगति दिखाई दे पर भारतीय उद्योगों को बहुत बड़ा नुकसान भी होने वाला है. इस तरह की किसी भी योजना को भारतीय मेधा और उद्योगपतियों के भरोसे आगे बढ़ाने की नीति का मंच सदैव ही स्वागत करता रहता है पर इस बार खुद मंच के सामने भी बड़ी विकट समस्या आ गई है. पहले तो भाजपा के साथ स्वदेशी जागरण मंच के लोग भी मनमोहन सिंह के अर्थशास्त्री होने के कारण उन पर उद्योगपतियों के दबाव में काम करने का आरोप बड़ी आसानी से लगा दिया करते थे पर अब जब देश को बिना लम्बी अवधि की किसी योजना के ही पूरी दुनिया के सामने खोला जा रहा है तो संघ, मंच और भाजपा के पास अपने बचाव में कहने और करने के लिए कुछ भी शेष नहीं है इसलिए ही वे केवल सांकेतिक विरोध कर अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्ति पाने में लगे हुए हैं.        
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