मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 19 अक्तूबर 2014

डीबीटीएल की वापसी

                                                              केंद्र सरकार की आर्थिक मामलों की समिति ने पूर्ववर्ती सरकार द्वारा घरेलू गैस सब्सिडी के मद में खर्च किये जाने वाली धनराशि के दुरूपयोग के लिए शुरू की जाने वाली डीबीटीएल परियोजना को १५ नवम्बर से कुछ संशोधनों के साथ देश के ११ राज्यों के ५४ ज़िलों में शुरू करने को हरी झंडी दे दी है. सरकार के इस फैसले में महत्वपूर्ण संशोधन यह है कि पहले इसे आधार के माध्यम से लागू किये जाने का प्रस्ताव था पर अब इसमें आधार की बाध्यता ख़त्म कर दी गयी है. इस योजना के तहत अब सब्सिडी की धनराशि सीधे उपभोक्ता के खाते में पहले ही आ जाएगी और उसके बाद वह घरेलू गैस खरीद सकेगा. यह तो सरकार के द्वारा प्रस्तावित रूप है पर इसका खुलासा भी होना बाकी है कि क्योंकि साल भर में सरकार उपभोक्ताओं को कितने सब्सिडी वाले सिलेंडर देना चाहती है यह इस पर भी निर्भर करना वाला है. फिलहाल १२ सिलेंडरों के हिसाब से ही आने वाले समय में इसे लागू किये जाने का प्रस्ताव माना जा सकता है.
                                                              सरकार के द्वारा इस प्रयास से जहाँ घरेलू गैस के दुरूपयोग की संभावनाओं को रोकने में सहायता मिलने वाली है वहीं दूसरी तरफ इससे बचने वाले धन के अन्य मदों में खर्च किये के लिए सरकार के हाथ भी खुलने वाले हैं. भारत में सब्सिडी आर्थिक से अधिक राजनैतिक मुद्दा रहा है और जिस तरह से सब्सिडी को लेकर हो-हल्ला मचाया जाता है उसका कोई मतलब नहीं होना चाहिए पर जनता से जुड़े हुए इस मसले पर हर राजनैतिक दल अपनी सुववधा के अनुसार ही रुख अपनाया करते हैं. सरकार में बैठे हुए दल इसे सुधारने की वकालत करते हैं तो विरोधी दलों के नेता इस गरीबों पर हमला जैसा साबित करने में नहीं चूकते हैं ? देश हित में इस तरह के मामलों में जितनी राजनैतिक परिपक्वता का प्रदर्शन नेताओं द्वारा किया जाना चाहिए उसमें वे सदैव ही चूक जाते हैं और घटिया राजनीति करने से नहीं बाज़ आते हैं.
                                                         देश की बेहतर आर्थिक स्थिति किसी दल विशेष नहीं बल्कि पूरे देश के लिए सुखद होती है पर इसमें भी राजनीति के समावेश से बहुत सारे ऐसे मसले भी नहीं हल हो पाते हैं जिनका हल होना पूरी तरह से देश हित में ही होता है और उन पर जितनी जल्दी निर्णय किये जाएँ वही अच्छा भी होता है पर अभी तक हमारे नेता और राजनैतिक दल इतने परिपक्व नहीं हो पाये हैं कि वे किसी भी सरकार द्वारा उठाये जाने वाले इन आवश्यक क़दमों पर दलगत राजनीति करने से दूर रह सकें. हर दल देश को आर्थिक महाशक्ति बनाना चाहता है पर इस बात का जवाब किसी के पास नहीं है कि वह खुद अपने नेतृत्व में ही ऐसा क्यों चाहता है ? देश के लिए अच्छे क़दमों का राजनीति से इतर समर्थन क्यों नहीं किया जाता है और इस तरह की राजनीति से देश को होने वाले नुकसान के लिए आखिर किसे ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिए ? जिन नीतियों से देश आगे बढ़ता है तो उसको अपनाने से किसी का क्या नुकसान होने वाला है यह बात आज तक नेता नहीं समझ पाये हैं जिस कारण से भी हमारी वास्तविक शक्ति का पता हमें नहीं चल पाता है.
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