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मंगलवार, 30 सितंबर 2014

पेट्रोलियम सब्सिडी और सरकार

                                                                         देश के पेट्रोलियम बाज़ार को अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों से जोड़ने की पिछली संप्रग सरकार की कवायद काफी हद तक पूरी होती दिखाई दे रही है और उसका भरपूर लाभ अब देश को मिलने वाला है क्योंकि जिस तरह से पिछले वर्ष जनवरी माह में डीज़ल को नियंत्रण मुक्त करने की दिशा में एक कदम बढ़ाते हुए संप्रग सरकार ने तक तक प्रति माह ५० पैसे की बढ़ोत्तरी का प्रस्ताव दिया था जब तक सब्सिडी का बोझ न खत्म हो जाये वह नयी सरकार के आने के बाद भी अपनी गति से जारी रहा है. सितम्बर माह की शुरुवात में जिस तरह से ५० पैसे की बढ़ोत्तरी करने के बाद डीज़ल पर केवल पांच पैसे की सब्सिडी ही शेष रह गयी थी तो उसके बाद इस बात की अटकलें लगायी जा रही थीं कि आने वाले समय में सरकार इसे भी बाज़ार के मूल्यों से जोड़ सकती है पर पूरे महीने लगभग ४५ पैसे प्रति लीटर का लाभ लेने के बाद भी सरकार अपने वायदे को पूरा करने से बच रही है और संभवतः पीएम की यात्रा से लौटने के बाद ही इस पर कोई फैसला ही पायेगा.
                                                           सरकार ने जिस तरह से पूरे महीने लाभ की स्थिति को बनाये रखा व उसके हित में था क्योंकि पूरे देश में ४५ पैसे प्रति लीटर का लाभ कितना बड़ा होगा इस बात का अंदाज़ा सरकार को भी नहीं है. अब १ अक्टूबर को समीक्षा में डीज़ल को भी पूरी तरह से बाज़ार आधारित करने के बारे में सोचा जाना चाहिए न कि एक महीना और इसका लाभ उठाया जाना चाहिए वैसे भी हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनावों से पहले सरकार इस बात का लाभ उठाना चाहेगी कि पेट्रोलियम पदार्थों के दाम घटने लगे हैं. इस बड़ी जंग के बाद भारत की आर्थिक स्थिति को और भी अधिक मज़बूत करने के लिए अब सरकार को घरेलू गैस के बारे में भी इसी तरह की नीति बनाने की आवश्यकता है और उस पर हर महीने कम से कम १० रूपये की बढ़ोत्तरी लागू की जानी चाहिए जिससे आने वाले समय में इस सब्सिडी का बोझ भी सरकार को कम से कम ही उठाना पड़े.
                                                           पेट्रोलियम पदार्थों में अब केवल घरेलू गैस और केरोसिन पर ही सब्सिडी का बोझ बचा है जिसे जल्द ही कम से कम स्तर तक लाने की आवश्यकता भी है क्योंकि जब तक सरकार पर अनावश्यक रूप से पड़ने वाले आर्थिक दबाव को कम नहीं किया जायेगा तब तक सही दिशा में किये जाने वाले कोई भी प्रयास पूरा फल देते हुए नहीं दिखाई देने वाले हैं. इस बारे में स्पष्ट बहुमत वाली वर्तमान सरकार को अब स्पष्ट और मज़बूत इरादों के साथ नीतियों का निर्धारण करना ही होगा क्योंकि आर्थिक क्षेत्र से जुडी हुई नीतियों पर अलोकप्रिय कदम होने के बाद भी पिछली गठबंधन सरकार ने देश के हित में इस तरह के क़दमों का पूरा समर्थन करते हुए उन्हें लागू करने की दिशा में भरपूर कोशिशें भी की थीं जिनका प्रतिफल आज सबके सामने है. अब देश की राजनीति को इस तरह के हथकंडों से बाहर निकल कर देश हित में कड़े काम उठाने की तरफ बढ़ने की आवश्यकता है जिससे आने वाले समय में कोई भी दल सस्ती लोकप्रियता के चक्कर में लोकलुभावन नीतियों के दम पर देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान न पहुंचा सके.          
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