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गुरुवार, 28 अगस्त 2014

दागी मंत्री - संविधान, पीएम और कोर्ट

                                                                          दागी मंत्रियों के मामले में चल रहे एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच ने एक महत्वपूर्ण आदेश में यह स्पष्ट किया है कि पीएम पर संविधान के संरक्षक होने के कारण उनके द्वारा किसी भी नेता को मंत्री बनाये जाने के निर्णय पर कोर्ट कोई आदेश या दिशा निर्देश जारी नहीं कर सकता है पर देश में भ्रष्टाचार के स्तर को देखते हुए पीएम से यह आशा की जाती है कि वे उच्च मूल्यों को हर स्तर पर बनाये रखेंगें. पूरा मामला २००४ का है जब कोर्ट में मुक़दमों का सामना कर रहे नेताओं को मंत्री पद दिए जाने के बाद इस तरह की याचिका कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत की गयी थी उसके महत्त्व को देखते हुए बाद में पांच सदस्यीय संविधान पीठ को सौंप दिया गया था. कोर्ट ने पीएम को सीएम के अधिकारों को स्पष्ट करते हुए कहा है कि इस मामले में उनके किसी भी निर्णय को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है और उनको भी इस मामले में संविधान से मिले अधिकार का निष्पक्षता से अनुपालन करना चाहिए.
                                                          कोर्ट ने पीएम और सीएम को केंद्र और राज्य के स्तर पर संविधान का संरक्षक बताते हुए उनसे यह अपेक्षा की है कि वे भी उसकी मूल भावना का ध्यान रखेंगें और अपनी तरफ से ही किसी दागी व्यक्ति को मंत्री नहीं बनाएंगे जिससे इस तरह के विवाद सामने ना आने पाएं. आज के समय में कई बार ऐसा भी हो जाता है कि कहीं किसी क्षेत्र विशेष में राजनैतिक कारणों से भी नेताओं पर मुक़दमे दर्ज़ कर दिए जाते हैं जिसके परिणाम स्वरुप उनको किस तरह से मंत्री बनने से रोका जाये यह केवल पीएम के विवेक पर ही निर्भर करता है इससे अधिक संविधान ने इसकी कोई व्याख्या नहीं की है. विचारधीन मामलों में भी इसी बात को ढाल बनाकर किसी को भी मंत्री बना दिया जाता है और स्पष्टीकरण यह दिया जाता है कि अभी उनके खिलाफ कोई सजा नहीं सुनाई गयी है ?
                                                         देश में संविधान के उच्च आदर्शों और मानकों का अनुपालन क्या किसी से दबाव के साथ कराया जा सकता है आज यह प्रश्न भी महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि अभी तक जिस तरह से दागी नेताओं को सभी दल उपकृत किया करते हैं आखिर उस परंपरा पर किस तरह से रोक लगायी जा सकती है ? आज देश की जनता के सामने कोर्ट की स्थति बिलकुल स्पष्ट और सही है पर क्या हमारी विधायिका इस मामले में उतनी सजग है कि वह अपने लिए भी इस तरह की छवि का निर्माण कर सके ? अब इस बात का पूरा दायित्व देश के राजनेताओं पर ही आ गया है कि वे अपने संवैधानिक मूल्यों को उस स्तर तक ले जाने का प्रयास करना शुरू करें जिस पर पहुंचकर उन्हें जनता की नज़रों में और आदर के साथ देखा जाना शुरू किया जा सके. देश में इस बात की अभी बहुत कमी है क्योंकि नेताओं के निरंकुश होने की बहुत सारी ख़बरें रोज़ ही हमारे सामने आती रहती है और उनके मामलों में कोई महत्वपूर्ण प्रगति भी नहीं हो पाती है. आज अब राजनेताओं को किसी भी मामले की त्वरित सुनवाई करने की व्यवस्था करने के साथ नए सिरे से सोचने की कोशिश करनी चाहिए.      
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