मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

पिलंग,गंगी,पिनस्वाण और चुनाव

                                                 देश में चल रहे आम चुनावों के बीच एक खबर ऐसी भी है जिसके होने या न होने का राजनैतिक दलों या नेताओं पर कोई ख़ास असर नहीं होने वाला है पर विकास की गाथाओं के बीच इस तरह की ख़बरें देश के दूर दराज़ के गावों की स्थितियों का सही चित्रण अवश्य ही कर जाती है. उत्तराखंड में उत्तरकाशी के चीन सीमा पर बसे हुए गांव पिलंग और टिहरी के गंगी और पिनस्वाण में आज तक १५ लोकसभा चुनाव हो जाने के बाद भी कोई प्रत्याशी कभी भी वोट देने की अपील तक करने नहीं पहुंचा है. इसका कारण इन गांवों का मुख्य सड़क मार्ग से इतनी अधिक दूरी पर होना है कि कोई भी प्रत्याशी यहाँ के लगभग ५०० वोटों के लिए इतनी बड़ी यात्रा करने को तैयार नहीं दिखता है. लोकतंत्र के इस पर्व में जिस तरह से हर बार इन गांवों के लोग पूरी निष्ठा के साथ वोट डालते रहे हैं वह अपने आप में बहुत बड़ी बात है क्योंकि जब इनके लिए कोई भी कुछ सोचने को तैयार नहीं है फिर भी ये देश के लिए अपने काम कर्तव्य को निभाने में किसी से भी पीछे नहीं रहते हैं.
                                                बड़े शहरों या दूर दराज़ के कस्बों में भी मतदान की पूरी सुविधा होने के बाद भी आम लोग जिस तरह से चुनाव के लिए बहुत उत्साहित नहीं  दिखाई देते हैं उस परिस्थिति में इन देश से कटे हुए स्थानों पर रहने वाले लोगों का जज्बा ही देश के लोकतंत्र के लिए अमृत का काम किया करता है. यदि देश में इस तरह के दूर दराज़ के क्षेत्रों में लोग उत्साह से वोट देते हैं तो उसके लिए चुनाव आयोग भी बधाई का पात्र है कि वह भी हर बार इन जगहों पर भी बूथ बनवाकर इन लोगों के उत्साह को बनाये रखने में पूरी मदद करता है. अब यदि चुनाव आयोग के पास कुछ ऐसी व्यवस्था हो कि वह इन क्षेत्रों के लिए कुछ बेहतर चुनाव प्रबंधन कर सके तो यह देश के लिए और भी अच्छा होगा क्योंकि ये वो लोग हैं जो बिना किसी लालच के हर बार वोट देते अवश्य हैं भले ही उनके वोटों की चाह में कोई प्रत्याशी इन गांवों तक नहीं पहुँचता है ? ऐसी स्थिति में अब और क्या किया जा सकता है जिससे देश भर में और भी स्थानों पर ऐसे गांवों की पहचान कर वहां पर मूलभूत सुविधाओं की बात करने की बात शुरू  की जा सके.
                                              उत्तराखंड के इस तरह के विकास के लिए अविभाजित यूपी या अब उत्तराखंड के किन नेताओं पर उत्तरदायित्व डाला जाये क्योंकि इस क्षेत्र पर कभी न कभी कांग्रेस, भाजपा, सपा और बसपा ने राज किया ही है फिर भी यह क्षेत्र विकास से इतने अछूते कैसे रह गए हैं यह सोचने की बात है ? आज क्या किसी दल में इतनी हिम्मत हैं कि कुछ हज़ार वोटों को पाने में समेटे हुए किसी क्षेत्र के विकास को अनदेखा कर सकें फिर कुछ सैकड़ा वोटों की चाह में आज तक कोई नेता इन गांवों तक क्यों नहीं पंहुचा ? एक बार यह समझा जा सकता है कि राज्य के सीएम के पास समय नहीं हो सकता है पर क्या क्षेत्रीय विधायक और संासद भी कभी इन गांवों में वोट मांगने या मतदाताओं का धन्यवाद तक करने नहीं जा सकते हैं जबकि राज्य में उनकी सरकारें चल रही होती हैं और वे चाहे तो हवाई मार्ग से भी यहाँ तक पहुँच सकते हैं ? विकास के दावे करने और समरसता के साथ सर्वांगीण विकास करने में हमारे नेताओं की दृष्टि आज भी बाधित ही है तभी वे केवल अपने हितों के बारे में ही सोच पाते हैं जिससे आज भी देश में ऐसे गांवों की लम्बी सूची मौजूद है जहाँ के लोगों ने वोट मांगने वाले नेता आज तक नहीं देखे हैं.   
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